ऋषिकेश एम्स के रोगियों और तीमारदारों के लिए माधव सेवा विश्राम सदन  बनकर हुआ तैयार,  3 जुलाई को आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भागवत करेंगे लोकार्पण,



ऋषिकेश  01 जुलाई। ऋषिकेश एम्स अस्पताल के रोगियों और तीमारदारों के लिए बनाए गए भाऊराव देवरस सेवा न्यास के महत्वपूर्ण माधव सेवा विश्राम सदन का लोकार्पण आगामी 3 जुलाई को  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ संचालक  डॉ मोहन भागवत करने जा रहे हैं। जिससे  भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में रोगियों के उपचार के लिए आने वाले रोगियों और तीमारदारों को अब परेशान नहीं होना पड़ेगा। भाऊराव देवरस सेवा न्यास ने एम्स के निकट माधव सेवा विश्राम सदन के निर्माण का फैसला लिया गया था जिसका निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। 

बताते चलें करीब 30 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुऐ इस विश्राम सदन में चार सौ तीस (430)बेड की सुविधा उपलब्ध है। वहीं रोगियों और उनके तीमारदारों को बेहद कम मूल्य पर भोजन भी मिल सकेगा।

इस विश्राम सदन के लिए एम्स के निकट वीरभद्र मार्ग पर 3.5 एकड़ भूमि लीज पर ली गई थीं। इसके निर्माण पर  करीब 30 करोड़ रुपये की  लागत बताई गई है।  माधव सेवा विश्राम सदन में 430 बेड का विश्राम गृह बनाया  गया है, जिसमें लगभग 129 कक्ष हैं। जिसमें 120 कमरे और क़रीब 2 डोमेट्री बनाई गई है।

 सोमवार को वीरभद्र मंदिर मार्ग पर स्थित माधव सेवा विश्राम सदन में  भाऊराव देवरस सेवा न्यास के अध्यक्ष ओमप्रकाश गोयल,प्रकल्प प्रमुख संजय गर्ग, सचिव राहुल सिंह, एवं प्रकल्प प्रमुख संजय गर्ग ने संयुक्त रूप से पत्रकार वार्ता करते हुए बताया कि एम्स ऋषिकेश के नजदीक बने माधव सेवा सदन का लोकार्पण आगामी 3 जुलाई को सायं 4 बजे होने जा रहा है । जिसका लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ संचालक मोहन डॉ मोहन भागवत द्वारा किया जाएगा। 

 पत्रकार वार्ता में  बताया गया कि माधव सेवा विश्राम सदन वास्तुशिल्प संरचना पारम्परिक भारतीय स्थापत्य के अनुसार तैयार किया गया है यह एम्स अस्पताल से पैदल आने जाने लायक दूरी को ध्यान में रखकर स्थान का चयन किया गया है। और यह पावन गंगा के अत्यंत निकट मात्र 300 मीटर दूरी पर स्थित है। रोगियों और उनके सहायकों के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सेवा सदन में पुस्तकालय, सत्संग, मनोरंजन, वाचनालय, खेलकूद के हॉल की भी व्यवस्था की गई है। 
सेवा सदन में कुल 430 लोगों के रहने की व्यवस्था है। तथा भोजन कक्ष में एक साथ 100 लोगों के लिए बैठ कर भोजन करने की व्यवस्था बनाई गई है। जिसके लिए रोगियों और तीमारदार की सेवा भाव को रखते हुए बहुत ही न्यूनतम कीमत को रखा गया है। रोगियों के लिए 4 लिफ्ट के माध्यम से सदन के ऊपरी तलों पर आरामदायक आवागमन की भी सुविधा दी गई है । 

उन्होंने यह भी बताया कि न्यास का मुख्य उद्देश्य सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की शिक्षा व स्वास्थ्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उनका स्तर सुधारना और उन्हें समाज के अन्य लोगों के समकक्ष लाने का प्रयास करना है।इस अवसर पर दिनेश सेमवाल ,अनिल मित्तल, राकेश शर्मा, संदीप मल्होत्रा, अमित वत्स ,सुदामा सिंघल,  दीपक तायल भी उपस्थित थे। 

दोनों आंखों से दिव्यांग कृष्णपाल आंख तथा हाथ पैर सलामत होने पर भीख मांगने वालों को दिखाते आईना  17 वर्ष से  हर साल श्री बदरीनाथ धाम में जा कर फेरी लगाकर बेचते है प्रसाद एवं पूजा सामग्री आत्म सम्मान के लिए प्रसाद बेचकर करते है जीवन यापन



ऋषिकेश/श्री बदरीनाथ धाम/ गोपेश्वर: 20 जून। श्री बदरीनाथ धाम में दोनों आंखों से दिब्यांग जिला- दुमका झारखंड निवासी कृष्णपाल (उम्र 35 )वर्ष 2007 से श्री बदरीनाथ धाम में फेरी लगाकर, डलिया गले में डालकर भगवान श्री बदरीनाथ धाम का प्रसाद,पूजा सामग्री, सिंदूर आदि बेचते है इसी से बदरीनाथ में अकेले रहकर अपना जीवन यापन करते है वह कहते है कि वह जन्मांध है इसका उन्हें कुछ भी मलाल नही है।

वह मौसम का अनुमान बता देते है तो जिस व्यक्ति की आवाज तथा नाम एक बार सुन लेते है दूर से आवाज से पहचान जाते है।
सिक्कों तथा नोटों की पहचान करते है अपने वस्त्र भी स्वयं धोते है तथा भोजन तक बनाते है की पेड फोन नंबर डायल कर लेते है तथा फोन अच्छी तरह अटेंड करते है।

गरीब घर में जन्में कृष्ण पाल स्कूल तो गये लेकिन अधिक पढ- लिख नहीं सके। उनकी इच्छा थी कि वह बदरीनाथ धाम पहुंच जाये लेकिन यह संभव नही हो रहा था। वर्ष 2007 में पहली बार किसी तरह अकेले जिला दुमका झारखंड से श्री बदरीनाथ धाम पहुंचे। श्री बदरीनाथ मंदिर के सिंह द्वार पर माथा टेका। वह कुछ दिन बदरीनाथ धाम में घूमे फिरे तो लोगों ने दिव्यांगता के कारण उन्हें दानस्वरूप पैसे देने शुरू किये एक दो दिन भीख के पैसे लेने के बाद उन्हें बहुत आत्मग्लानि हुई उन्होंने निश्चय किया कि वह कभी न तो भीख मांगेंगे नहीं किसी की दान में दी हुई वस्तु स्वीकारेंगे। कुछ ऐसा करेंगे जिससे लोग उन्हें दया का पात्र न समझे इस तरह वह स्वाभिमान से जी सकें।

उन्होंने निश्चय किया कि वह भगवान बदरीविशाल का प्रसाद बैच कर जीवन यापन करेंगे।
कृष्ण पाल अब यात्राकाल में मंदिर परिसर के बाहर सिंह द्वार के निकट तथा दर्शन पंक्ति में डलिया में रखकर प्रसाद, सिंदूर, पूजा सामग्री बेचते दिख जाते है। वह प्रसाद बेचने के बाद क्यू आर कोड से डिजिटल पेमेंट भी स्वीकारते है उनका कहना है कोई भी यात्री उन्हें ठगता नहीं है। श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद वह झारखंड चले जाते है।

कृष्ण पाल का कहना है कि वह जन्मांध होकर भी भीख न मांगते है न स्वीकार करते है वह उन लोगों को अपने कार्य से प्रेरणा देना चाहते है कि शरीर संपन होने के बावजूद भीख न मांगे बल्कि पुरूषार्थ करें।
जो बदरीनाथ अथवा तीर्थस्थलों तथा अन्य जगह भीख मांगते हैं उनको कृष्णपाल से सीख लेनी चाहिए।

श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया कि दिव्यांग कृष्ण पाल बहुत स्वाभिमानी है उन्हें अपने दिव्यांग होने का कोई दु:ख नही है लेकिन उनको इस बात की टीस है कि अच्छे खासे लोग तीर्थस्थलों, सड़को पर भीख मांगते फिरते है तथा काम नहीं करना चाहते।
कृष्णपाल अपने जीवन संघर्ष बारे में मीडिया तथा सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को बताना चाहते है ताकि उनसे कुछेक लोग प्रेरणा ले सकें।
चार पांच वर्ष पहले मीडिया ने उनके पुरूषार्थ को बहुत सराहा था।